23 June, 2011

गलती कर कर के बने, महा-अनुभवी लोग |

शान्ति-प्रिय होते सदा, जिनको प्रिय सम्मान |
करते छल हद तोड़  कर,  माया जिनके प्राण | 
माया   जिनके   प्राण,    डुबाते   सारे   रिश्ते |
शांतिप्रिय  जो लोग,  आज  के  वही फ़रिश्ते |
पर रविकर यह शांति,  नहीं श्मशान घाट की |
करे  कर्म  की  पूजा ,  न  कि  जोड़-गांठ  की || 

*          *          *          *           *           *

गलती कर कर के बने, महा-अनुभवी लोग |
महाकवि बनता कोई, सहकर  कष्ट वियोग |
सहकर कष्ट वियोग, गलतियाँ  करते जाएँ  |
किन्तु रहे यह ध्यान, उन्हें फिर न दोहराएँ |
कह रविकर सन्देश, यही है  श्रेष्ठ-जनों का  |
पंडित "शास्त्री" संत, आदि सब महामनों का || 

&          &             &              &          & 
बिकता है हर आदमी, भिन्न-भिन्न है दाम |
सच्चा मोल चुकाय वो, पड़ता जिसको काम ||
पड़ता  जिसको  काम , खरीदे  देकर  पैसा  | 
करता  न  सम्मान,   करे  बदनाम   हमेशा |
पर रविकर यदि प्यार, ख़रीदे तुम्हें तोल के -
बिक जाना तुम यार, वहाँ पर बिना मोल के ||

4 comments:

  1. आजतक आपके ब्लॉग तक न पहुँच पायी थी....अफ़सोस है...

    अब नियमित रहूंगी...

    ReplyDelete
  2. बहुत-बहुत स्वागत महोदया आपका |
    कभी इधर भी चक्कर लगा लेना |
    आभार ||
    http://neemnimbouri.blogspot.com/
    http://dineshkidillagi.blogspot.com/

    ReplyDelete
  3. बहुत-बहुत आभार |

    ReplyDelete