02 July, 2013

रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने -

इस रोने से क्या भला, नहीं समय पर चेत |
बादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |

हुवे हजारों खेत, रेत मलबे में लाशें  |
दुबक गई सरकार, बहाने बड़े तलाशें |

रविकर पक्का धूर्त, इसे दो रोने धोने  |
बड़ा खुलासा आज,
किया क्यूँ इस "इसरो" ने ||

7 comments:

  1. बेहद सशक्त भावाभिव्यक्ति .....सहज अनुभूत अभिव्यक्ति..

    ReplyDelete
  2. क्या बात है, बहुत बढिया

    ReplyDelete
  3. वाह....
    अप्रतिम रचना

    सादर

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत खूब
    सहज पर अर्थपूर्ण
    सादर

    ReplyDelete
  5. वाह रविकर जी, सुंदर रचना । सामयिक भी सटीक भी ।

    ReplyDelete
  6. इस रोने से क्या भला, नहीं समय पर चेत |
    बादल फटने की क्रिया, हुवे हजारों खेत |
    सुन्दर,आभार.

    ReplyDelete
  7. आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक 05.07.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक की गयी है। कृपया देखें और अपने सुझाव दें।

    ReplyDelete