22 July, 2013

शहरी जानवर : नाकारे इन्सान, मौन अस्तित्व नकारें

झबरी कुतिया के बढ़े,  जब बाजारू  दाम  
 बाजारू कुत्ते बड़ा, मचा रहे कुहराम      

मचा रहे कुहराम , बिल्लियाँ चूहे मारें 
 नाकारे इन्सान, मौन अस्तित्व नकारें 

इधर ढूँढ़ के लाय, दूर की कौड़ी खबरी 
बढ़िया बिस्कुट खाय, उधर वह कुतिया झबरी   

4 comments:

  1. यही सच है, नाकारों की मौज है ।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  3. बहुत सुंदर
    क्या बात


    मुझे लगता है कि राजनीति से जुड़ी दो बातें आपको जाननी जरूरी है।
    "आधा सच " ब्लाग पर BJP के लिए खतरा बन रहे आडवाणी !
    http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/07/bjp.html?showComment=1374596042756#c7527682429187200337
    और हमारे दूसरे ब्लाग रोजनामचा पर बुरे फस गए बेचारे राहुल !
    http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/blog-post.html

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