28 December, 2015

सुखी रहे बिटिया सदा, पाये प्रेम अथाह -


कुण्डलियाँ 

खाता-पीता घर मिले, यही बाप की चाह |
सुखी रहे बिटिया सदा, पाये प्रेम अथाह |
पाये प्रेम अथाह, हमेशा होय बरक्कत |
करवा देते व्याह, किन्तु दूल्हे की आदत |
रविकर ले सिर पीट, नहीं कोई दिन रीता |
मुर्गा मछली मीट, और वह खाता-पीता ||

दोहा 
नहीं हड्डियां जीभ में, पर ताकत भरपूर |

तुड़वा सकती हड्डियां, देखो कभी जरूर ||

कुण्डलियाँ 
जंगल ऐसा ही रहा, नहीं हुआ बदलाव |
दोनों चलते ही रहे, अपना अपना दाँव | अपना अपना दाँव, गई गीदड़ की सत्ता |उल्लू की सरकार, करे कोशिश अलबत्ता |बड़ा पुराना मर्ज, इसी से होय अमंगल | करें शिकायत दर्ज, शीघ्र सुधरेगा जंगल ||



2 comments:

  1. खाते पीते घर का लेकिन खाता पीता न हो, सभी माँ बाप की चाह होती है लेकिन सबका नसीब एक जैसा नहीं ..
    बहुत सही ...

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  2. वाह !
    क्या बात है भाई जी ...

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