08 June, 2017

काव्य शक्ति-सम्पन्न तो, कवि को भूले कौन


खले मूढ़ की वाह तब, समझदार जब मौन।
काव्य शक्ति-सम्पन्न तो, कवि को भूले कौन।।

कह के कविता की कमी, कन्नी काटें आप।
कवि सुधार जो कर सके, रहे बैठ चुपचाप।।


ये तन धन सत्ता समय, छोड़ें रविकर साथ।
सच स्वभाव सत्संग सह, समझ पकड़ ले हाथ।।

सॉरी सॉरी नित कहे, रविकर तो बेशर्म।
डॉक्टर सॉरी कह गया, है दस को दशकर्म।।

मेह मान मेहमान को, कर स्वागत-सत्कार।
होय न जब तक तर-बतर, रविकर नही नकार।।

चाय नही पानी नही, पीता अफसर आज।
किन्तु चाय-पानी बिना, करे न कोई काज।।

दिनभर पत्थर तोड़ के, करे नशा मजदूर।
रविकर कुर्सी तोड़ता, दिखा नशे में चूर।।

सरसराय शर सास के, खींचे बहू कमान।
चल चुपके से ले निकल, बड़ी कीमती जान।।

नहीं समय पर थी समझ, अंधकार था व्याप्त।
लेकिन जब आई समझ, रविकर समय समाप्त।।

रख कर आले पर अकल, घर में वक्त गुजार।
पर रविकर लेकर निकल, बेढब बड़ा-बजार।।

करे नहीं गलती कभी, बड़ा तजुर्बेकार।
किन्तु तजुर्बे के लिए, की गलतियां हजार।।

अवसादी, निंदित हुआ, रविकर ख्वाब खराब।
चुन ले आशा कर क्षमा, देख दुबारा ख्वाब।।

गर्मी खून जुनून की, आज निकाले जून।
मानसून ही दे सके, अब तो शीत- सुकून।।

जले खेत-जल लू चले, है साँसत में जान।
जब वीयर पीते धनी, खोजे जहर किसान।।

दर्पण जैसे दोस्त की, यदि पॉलिस बदरंग।
रविकर छोड़े शर्तिया, परछाईं भी संग।

जैसे गोला-बर्फ का, रिश्ता लिया बनाय।
रविकर शीतलता बिना, लेकिन यह गल जाय।।

छूकर निकली जिन्दगी, सिहरे रविकर लाश।
जख्म हरे फिर से हुए, फिर से शुरू तलाश।।

दिल में पलते स्वप्न फिर, कैसे हों साकार |
शंका यदि विश्वास पर, हर कोशिश बेकार ||

कर ले रविकर दिल बड़ा, सुनकर छोटी बात।
यद्यपि दुनिया चिड़चिड़ा, करे घात-प्रतिघात।।

लगे कठिन यदि जिंदगी, उसको दो आवाज।
करो नजर-अंदाज कुछ, बदलो कुछ अंदाज।।

युद्ध महाभारत छिड़ा, बटे गृहस्थ पदस्थ।
लड़े शिखण्डी भी जहाँ, अवसरवाद तटस्थ।।

रविकर गौमाता कटे, भारत माता खिन्न।
यदा कदा कटते रहे, जिसके अंग विभिन्न।।

दूध फटे तो चाय बिन, बढ़ जाता सरदर्द।
गाय कटे तो जश्न में, शामिल हों नामर्द।।

सबको देता अहमियत, ले हाथों में हाथ।
बुरे सिखा जाते सबक, भले, भले दें साथ।।

जर्जर थुन्नी-धन्नियाँ, रविकर छत दीवार।
चुका चुका भाड़ा अगर, चल हो जा तैयार।

जर्जर होते जा रहे, पल्ला छत दीवार।
खोज रहा घर दूसरा, रविकर सागर पार।।।।

लेडी-डाक्टर खोजता, पत्नी प्रसव समीप।
बुझा बहन का जो चुका, रविकर शिक्षा-दीप।।

गिरे स्वास्थ्य दौलत गुमे, विद्या भूले भक्त।
मिले वक्त पर ये पुन:, मिले न खोया वक्त।।

कभी सुधा तो विष कभी, मरहम कभी कटार।
आडम्बर फैला रहे, शब्द विभिन्न प्रकार।।

No comments:

Post a Comment