05 September, 2017

तरु-शाखा कमजोर, पर, गुरु-पर, पर है नाज

दोहे
तरु-शाखा कमजोर, पर, गुरु-पर, पर है नाज ।
कभी नहीं नीचे गिरे, ऊँचे उड़ता बाज।।

सत्य बसे मस्तिष्क में, होंठों पर मुस्कान।
दिल में बसे पवित्रता, तो जीवन आसान।।


कुंडलियाँ 
गुरुवर करूँ प्रणाम मैं, रविकर मेरो नाम |
पाया अक्षर ज्ञान है, पाया ज्ञान तमाम |

पाया ज्ञान तमाम, निपट अज्ञानी लेकिन |
बहियाँ मेरी थाम, अनाड़ी हूँ तेरे बिन |

सतत मिले आशीष, पुन: आया हूँ दर पर |
करिए शुभ कल्याण, शिष्य सच्चा हूँ गुरुवर -

4 comments:

  1. शुभकामनाएं। सुन्दर।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बुधवार (06-09-2017) को
    तरु-शाखा कमजोर, पर, गुरु-पर, पर है नाज; चर्चामंच 2719
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. बहुत ही सुन्दर .....
    लाजवाब....

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  4. बहुत बढ़िया लिखा है आपने

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